<p style="text-align: justify;"><strong>मेरठ</strong>: टीनऐज में जिंदगी की राह भटक चुकी 20 बेटियों को अब कालेज का रास्ता मिला है. इन बेटियां के परिवार इनसे दूर हो चुके हैं और जिंदगी में अब रिश्ते के नाम पर इनके पास कुछ भी नहीं है. महीनों से नारी निकेतन में रखी गई इन बेटियों ने सरकार के अभियान के तहत पढ़ने-लिखने की इच्छा जताई थी.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>शिक्षा के जरिए भटकी जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश</strong></p> <p style="text-align: justify;">मेरठ के जगदीश शरण इंटर कालेज में मंगलवार को इन बेटियों का पहला दिन था. स्कूल ड्रेस पहनकर हाथ में किताबों का बैग लिए नारी निकेतन से 20 बेटियां कॉलेज पहुंची. इनमें से कई लड़कियां यूपी के बाहर के सूबों से है तो कई ऐसी है जिनको गुमराह करके परिवार से दूर कर दिया गया. कई प्रेम के नाम पर छली गई तो कई बदनाम धंधों के बंधन से आजाद हुई है. प्रदेश सरकार ने नारी निकेतन में रहने वाली इन बेटियों के जीवन में उजाला करने की ठानी है और काउन्सलिंग के आधार पर पढ़ने की इच्छुक बेटियों को कॉलेज में एडमीशन दिलाया है. इनमें से कई बेटियों ने महीनों बाद नारी निकेतन के बाहर का जीवन देखा.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>ऐसी रही बेटियों की पहले दिन की क्लास</strong></p> <p style="text-align: justify;">नारी निकेतन की वार्डन की देखरेख में सभी बेटियां सुबह होते ही कॉलेज के गेट पर पहुंची. कॉलेज की ड्रेस पहने इन बेटियों का कॉलेज की प्रिसिंपल ने गेट पर स्वागत किया और उन्हें नियम-कायदे बताए. उन्हें यह भी बताया गया कि उन्हें पढ़ाई में मन लगाना है और कॉलेज की कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था तोड़ने की कोशिश नाकाम रहेगी. क्लास में सभी बेटियों का नाम हाजिरी के लिए पुकारा गया तो सभी ने ‘यस मैम’ कहकर जवाब दिया. इन बेटियों के एडमीशन 10वीं, 11वीं और 12वीं कक्षा में हुए है. प्रदेश सरकार नारी निकेतन में बंद बाकी बेटियों को भी पढ़ने-लिखने और हुनरमंद बनाने के लिए स्वंयसेवी संस्थाओं और समाजसेवियों के माध्यम से उनका मन बदलने की कोशिश कर रही है.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>बाल और किशोर संप्रेक्षण गृह के बच्चे भी स्कूलों में पढ़ेंगे</strong></p> <p style="text-align: justify;">हाल ही में मेरठ मंडल की कमिश्नर अनीता मेश्राम ने राजकीय बाल संप्रेक्षण गृह और राजकीय किशोर संप्रेक्षण गृह के बालकों को भी पढ़ाने के लिए उनके निजी स्कूलों में एडमीशन कराए हैं. शहर के कई नामी स्कूलों ने इन बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का जिम्मा उठाने के लिए खुद पहल की थी. कमिश्नर अनीता मेश्राम खुद इन बच्चों की अभिभावक बनी हैं और उनसे जुड़ी जिम्मेदारियां उठाने का संकल्प लिया है. कमिश्नर ने स्कूल में अभिभावक के नाम के आगे खुद का नाम और किसी भी दशा में संपर्क के लिए अपना फोन नंबर भी अंकित कराया है. निजी स्कूलों ने बच्चों को मुफ्त एडमीशन, किताबें, ड्रेस और स्कूली वाहन की सुविधा मुहैया कराई है.</p>
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