अब सवाल है कि जब इन कंपनियों को भारतीय मूल के लोग चलाएंगे तो क्या ये कंपनियां भारत के प्रति अपनी पॉलिसी में बदलाव करेंगी और क्या इन अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के लिए काम करते हुए इन लोगों के मन में ये भावना आएगी कि फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी?
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