हम एक राष्ट्र के रूप में अपने संविधान को शासन की गीता बनाने से चूक गए हैं. देश के सबसे कमजोर आदमी के जीवन में संविधान का असर पहुंचा नहीं पाए. हम अदालत में गीता की कसम लेकर सच बोलते हैं पर संविधान को लेकर वो भावना देश के नागरिकों में जन्म नहीं ले सकी.
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